मंगलवार, 13 मार्च 2012

Shivoham शिवोऽहम्

मनोबुद्धयहंकार चित्तानि नाहं,
न च श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 1 ।।


न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 2 ।।


न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 3 ।।


:न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 4 ।।


न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 5 ।।


अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङत नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 6 ।।






1 टिप्पणी:

  1. हुं तो मंगलकारी, कल्याणकारी, हितकारी चिदानंदस्वरुप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् छुं.जो वास्तविकता मे सांस पकडकर, चेतन स्व से उर्ध्वगामि होकरके दैवी शक्ति जाग्रत करना योग्य व्यक्ति होता है। जो पीठ बल से हो करके मष्तिस्क में ब्रह्मरंध्र तक बहती है चेतन शक्ति जो सहज योग ब्रह्मज्ञानी अहंब्रह्मास्मि अद्वैत अनुभूती है। धन्यवाद शुभ प्रभात।

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